ความเงียบที่รักที่สุด
ศิลปะเมือง
3 बजे की चुप्पी में फ़ोटो
कल्पना कीजिए — दिल्ली के सबवे प्लेटफॉर्म पर सिर्फ़ बारिश की आवाज़ और मेरा कैमरा। तभी मैंने समझा: ‘अब मैंने पहली बार सच्चाई को कैद कर लिया है!’
सच्चाई = सिर्फ़ पसीना + हलका-हलका मुस्कुराहट
वो महिला तो सिर्फ़ ‘बैठी’ हुई थी… पोज़ नहीं, मेकअप नहीं, बस ‘एक’ हुई। मैंने सोचा: ‘ये कौन है? मॉडल?’ फिर पता चला — ‘ये हमसब हैं!’ 😅
कामयाबी = सभी ‘गड़बड़’ को समझना
आखिरकार, मुझे पता चला: ‘खूबसूरत’ होने के लिए… कभी-कभी ‘अखड़’ होना पड़ता है! इसलिए—आपको ₹200000/वर्ष कमाने में असफल? शायद…आपको चुप होने कि आदत है! 🤭
अगली बार 3 AM पर सड़क पर घुट। फोन मत निकालिए… बस देखें, ध्यान। और… उस “चुप” में छुप-छुप… sab kuch samajh jayega! 😌
आपको kya lagta hai? ye photo kisi ke liye bhi ek ‘selfie’ ban sakti hai? ya phir sirf mera hi ghar ka bathroom mirror? Pata chal jaaye toh comment kar dena! 😉
В 3 утра на станции не ищут красоты — ищут тишину.
Я видел её: женщина в пальто как забытый обет, без макияжа, без позы, только дыхание и дождь на скамье.
Моя камера не делала снимок — она просто запомнила момент, когда тишина стала громче крика.
Мама говорила по-русски: «Тишина — это звук, который никто не слышит».
Вы тоже когда-нибудь сидели в пустом вагоне, ждали не фотки… а тишину? Комментируйте! 🌧

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